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Friday, December 25, 2020

समर्पण - Surrender


कुछ डगमग कुछ गिरते सम्हलते
नन्हें क़दम लेकर चलना सीखा
एक बड़ी सफलता थी एक बड़ी बात
अपने दो पैरों पर अब था भरोसा

कुछ पढ़ाई कक्षा में हुई कुछ घर पर 

ज्ञान गुरु से लिया कभी थोड़ा घर पर

पुस्तकें सारी पढ़ डाली  किए अनेक प्रयोग

विद्यार्थी से आर्थी बनने का पूरा किया संकल्प


अब नहीं कोई रोक सकेगा यही थी सोच 

अनेक योजनाएँ बन और बिगड़ रही थीं

कुछ ने रूप लिया और कुछ ने आकार

सपने अब होते लग रहे थे साकार


हर स्तिथि फेंक रही थी एक नया प्रश्न

हर परिस्थिति बनके खड़ी थी एक चुनौती

सामना करने था भरपूर हौसला

पूरी ताक़त थी और मन में दृढ़ संकल्प


कभी थमें कभी लिया सहारा पर बढ़े सदा आगे 

खड़ा किया एक अपना साम्राज्य जीतकर 

कभी लड़कर और कभी समझौता करके

जीवन को जिया आदर्शों से मथकर 


रहता नहीं हमेशा समय एक समान 

जीवन का चक्रव्यूह करता है क्षीण

समान बल नहीं रहा है अब 

नहीं है वो हौसला और हिम्मत


बाक़ी है जीवन अभी और भी 

चलना है इन विकट राहों पा अभी भी

पर एक गहरी साँस लेकर सोचता हूँ

समय अब किया मैंने तुझपे समर्पण















धूमकेतु - Shooting Star

 दूर बादलों की ओट से  क्षितिज के समीप 

एक प्रकाश पुंज निकला और आकाश के मध्य विलुप्त हो गया 


किसी ने उसे अपनी आँखों में भर लिया 

किसी ने उसे एक तसवीर में क़ैद कर लिया 


मंत्रमुग्ध कुछ पलों के लिए आकाश पर दृष्टि टिक गयी 

कुछ ने ईश्वरीय चमत्कार समझ एक एक वरदान माँग लिया 


वह समय था जब काले गगन को चीर के 

मानो एक सुनहरी खड़ग ने उजाला कर दिया 


किसी ने कहा धूमकेतु है ये गहरे काले अंधकार में 

क्षण मात्र के लिए आशा का प्रकाश भर गया 


था वह स्वछंद पूरे आकाश का मानो स्वामी 

आशाओं से भरी और संकल्पों से सजी शुरुआत 


उसकी योजनाओं की कोई सीमा  थी 

उसके विश्वास में भी कोई कमी  थी 


और बनके उसे धूमकेतुपूरी धरा  को 

आशा और प्रकाश से भर देना था 


नहीं था उसकी सोच में अपना कोई भविष्य 

न ही था उसका इरादा क्षणभंगुर जीवन का 


जगत सारा एक अंधकार में डूबा था

करना था उसे सबको जागृत प्रकाशित 


पर समय का निश्चय जैसे कुछ और ही था 

पर वह न कर पाया जो उसने सोचा था 


वह धूमकेतु एक उल्का पिंड बन अस्त हुआ 

अनंत नहीं, बस कुछ समय ही जीवन रहा 


क्षण भर के लिए प्रकाशित किया इस धरती को  

जहां उसे अनंत ज्योति बन कर रहना था 





Saturday, December 5, 2020

Who Do I see

Who do you see when you look in the mirror
Do you see someone that you know
Do you see someone from past long gone
Do you see someone in the future to come


In the mirror, is a reflection of the moment.

In the mirror, is the culmination of past.

In the mirror, is the fleeting present.

In the mirror, is the future taking birth.


What eye see is what the mirror shows.

But what I see is who I want to see within.

The difference between eye and I is to remove both.

To see me with my eye closed.


I see a kid playful, cheerful sans worry

I see a teen aloof and affable at the same time

I see a young adult full of hope and zest for change

I see an adult responsible tedious but tranquil


Mirror shows reflection is what eye see

Mirror projects many layers is what I see

Choice is mine to accept moment's image

Choice is mine to live the moment in place


Child in me cries in pain

Grown up in me laughs at pain.

Child in me rouses in anger

Grown up in me protects in danger.

Father in me loves and provides

Son in me craves and abides.


I am all those and more all at once

I am all that and one in the moment.

The very moment shows me the image

What I chose and what I became


I still am a child a teen an adult

I still am a father a son, an all encompassing Man

Who do you see when you look in the mirror.

What do I see when I look into the the mirror.

Sunday, October 11, 2020

एक नयी कविता

 

आज फिर एक कविता लिखने बैठा हूँ मैं

आकाश पीले से लाल हो रहा है
दूर पंछी अपने समूह में लौट रहे हैं 
इस अट्टालिका के सातवें सतह पर 
एक छोटा सा आकाश देखने बैठा हूँ मैं 

अब पवन के झोंके महसूस कर रहा हूँ
गगन में तारे छुप से रहे हैं
वो पूरा चाँद भी ओट में हो गया है
चाँदनी को गहराता हुआ बादल 
मानो खा सा गया है 
शाम के धुँधलके में परछाईं देखने बैठा हूँ मैं

रात कठोर और गहरी काली है
अम्बर ने मानो एक चादर ही डाली है 
अटारी पर खड़े हुए प्रकाशहीन आकाश के तले
मानो जीवन रुक सा गया है
इस रात में जीवंतता खोजने लगा हूँ मैं

कब रात गयी और कब सुबह हुई
भोर के तारे ने एक नया दृश्य दिखाया
अम्बर की चादर सिमट गयी है 
सुरमई छटा पूर्व दिशा में दिख रही है
सूर्या की पहली किरण ने सोते फूलों को जगाया
धरा पर जीवन लौटते देख रहा हूँ मैं

आज फिर एक कविता लिखने बैठा हूँ मैं।

Silence - मौन

 

मौन हूँ मैं , क्योंकि
प्रतीक्षा में हूँ 

मुख से शब्द, 
जब बोले गए 
कानों ने सुना, 
तब सुने गए 

मगर नयनों की भाषा 
में संवाद हो रहा है

यह नयनों की भाषा 
कठिन हैं बहुत 

कैसे कहें किसके

नयनों ने कहे
और कैसे कहें किसके 
नयनों ने सुने

इसलिए मौन हूँ मैं 
मुख और कर्ण शांत हैं 
नयन के चीत्कार के समक्ष 

यह नयन जो दीप्त और शांत 
थे कभी 
अब यहि नयन सुर्ख़ सूखे और बेजान हैं 

मौन हूँ मैं इसलिए 
इन नयनों की आर्द्र चीख़ों का 
कोई उत्तर नहीं है अब 

प्रतीक्षा में हूँ मैं 
मौन हूँ मैं

Ashram Vyavastha (Stages of Life) - A Commentary

Since the dawn of civilization, every culture has endeavoured to find a better structure to conduct itself according to prevalent conditions...