दूर बादलों की ओट से क्षितिज के समीप
एक प्रकाश पुंज निकला और आकाश के मध्य विलुप्त हो गया
किसी ने उसे अपनी आँखों में भर लिया
किसी ने उसे एक तसवीर में क़ैद कर लिया
मंत्रमुग्ध कुछ पलों के लिए आकाश पर दृष्टि टिक गयी
कुछ ने ईश्वरीय चमत्कार समझ एक एक वरदान माँग लिया
वह समय था जब काले गगन को चीर के
मानो एक सुनहरी खड़ग ने उजाला कर दिया
किसी ने कहा धूमकेतु है ये गहरे काले अंधकार में
क्षण मात्र के लिए आशा का प्रकाश भर गया
था वह स्वछंद पूरे आकाश का मानो स्वामी
आशाओं से भरी और संकल्पों से सजी शुरुआत
उसकी योजनाओं की कोई सीमा न थी
उसके विश्वास में भी कोई कमी न थी
और बनके उसे धूमकेतु, पूरी धरा को
आशा और प्रकाश से भर देना था
नहीं था उसकी सोच में अपना कोई भविष्य
न ही था उसका इरादा क्षणभंगुर जीवन का
जगत सारा एक अंधकार में डूबा था
करना था उसे सबको जागृत प्रकाशित
पर समय का निश्चय जैसे कुछ और ही था
पर वह न कर पाया जो उसने सोचा था
वह धूमकेतु एक उल्का पिंड बन अस्त हुआ
अनंत नहीं, बस कुछ समय ही जीवन रहा
क्षण भर के लिए प्रकाशित किया इस धरती को
जहां उसे अनंत ज्योति बन कर रहना था
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