मौन हूँ मैं , क्योंकि
प्रतीक्षा में हूँ
मुख से शब्द,
जब बोले गए
कानों ने सुना,
तब सुने गए
मगर नयनों की भाषा
में संवाद हो रहा है
यह नयनों की भाषा
कठिन हैं बहुत
कैसे कहें किसके
नयनों ने कहे
और कैसे कहें किसके
नयनों ने सुने
इसलिए मौन हूँ मैं
मुख और कर्ण शांत हैं
नयन के चीत्कार के समक्ष
यह नयन जो दीप्त और शांत
थे कभी
अब यहि नयन सुर्ख़ सूखे और बेजान हैं
मौन हूँ मैं इसलिए
इन नयनों की आर्द्र चीख़ों का
कोई उत्तर नहीं है अब
प्रतीक्षा में हूँ मैं
मौन हूँ मैं
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