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Sunday, February 7, 2021

एहसास - A Realisation

किसी के सुरीले स्वर सुनकर 
किसी के बनाए सुंदर चित्रों को देखकर 
मन ही मन एक आवाज़ उठी 
क्या परियोजन है मेरा इस जगत में  


किसी ने बड़े अविष्कार किए 

किसी ने लोगों को जीवनदान दिए 

मन ही मन दोबारा  आवाज़ उठी 

क्या मेरे कर्म  ने जीवन तारे 



किसी का कौशल युद्ध में दिखा 

किसी ने अपना परचम शिखरों पर फहराया 

मन ही मन वही आवाज़ उठी 

क्या उपयोगी रहा मेरा जन्म  


किसी ने बड़े संगठनों को जन्म दिया 

किसी का कौशल बड़ी इमारतों में दिखा 

मन ही मन फिर वही आवाज़ उठी 

क्या इस जीवन को भरपूर जिया  


कई दिनों तक इस ख़याल ने 

बेचैन किया  रातों को जगाया बहुत 

मन के प्रश्न दूर नहीं हुए कभी 

सोचा बहुत तो एक ही ख़याल आया।


शायद मेरे होने से ज़्यादा 

और कुछ ज़रूरी नहीं था 

मेरे साथ चलने वालों के लिए 

मेरा होना ही काफ़ी था।

Saturday, February 6, 2021

समर्पण इस वर्ष को - Surrender to this year

 स्वच्छंद मस्त और मदमाती
हवा का झोंका था वो 
निष्फ़िकर मासूम और चंचल
बालक के समान था वो 

सिंह के समान विचरना
गज़ के समान मदमस्त
सम्पूर्ण जगत का जैसे स्वामी
ऐसा आचरण था उसका

कभी हृदय से कवि होता
लेखनी से कभी साहित्य सृजक
कभी शिल्प का सृजन करता
तो कभी एक दर्शक 

उसका जीवन मानो एक 
रोमांचकारी यात्रा
हर उगता सूरज मानो
एक नया ध्येय प्रकटाता

वर्ष बीते इसी समान
और अब आया एक नया वर्ष
अभूतपूर्व अपरिचित और अद्वितीय

बीते वर्ष एक धुंधली स्मृति से लगे  
सम्पूर्ण जगत मानो थम गया 
समय का चक्र चल तो रहा था 
पर रथ की गति कुछ सुस्त सी थी 

हृदय की कामनाएँ वही थीं 
ध्येय पर अब बदल गए थे 
सारा दृष्टिकोण अब जीवन पर केंद्रित था 
लक्ष्य अब उत्तरजीविता का था 

उपाय तो बहुत हुए 
आँकलन गणित विज्ञान पर विचारा गया 
उत्तर एक समान ही मिला 
समय रुका नहीं है बस धीमा चल रहा है 

समर्पण किया इस वर्ष को 
समय को परखा और दायित्व निभाए 
जीवन और उत्तरजीविता को पहचाना 
और समर्पित किए चले कालचक्र को 

जीवन है तो ध्येय है
जीवन है तो लक्ष्य बनेंगे 
जीवन है तो सब मुमकिन है 
समर्पण है इस समय को समर्पित हम भी 




Ashram Vyavastha (Stages of Life) - A Commentary

Since the dawn of civilization, every culture has endeavoured to find a better structure to conduct itself according to prevalent conditions...