हवा का झोंका था वो
निष्फ़िकर मासूम और चंचल
बालक के समान था वो
सिंह के समान विचरना
गज़ के समान मदमस्त
सम्पूर्ण जगत का जैसे स्वामी
ऐसा आचरण था उसका
कभी हृदय से कवि होता
लेखनी से कभी साहित्य सृजक
कभी शिल्प का सृजन करता
तो कभी एक दर्शक
उसका जीवन मानो एक
रोमांचकारी यात्रा
हर उगता सूरज मानो
एक नया ध्येय प्रकटाता
वर्ष बीते इसी समान
और अब आया एक नया वर्ष
अभूतपूर्व अपरिचित और अद्वितीय
सम्पूर्ण जगत मानो थम गया
समय का चक्र चल तो रहा था
पर रथ की गति कुछ सुस्त सी थी
हृदय की कामनाएँ वही थीं
ध्येय पर अब बदल गए थे
सारा दृष्टिकोण अब जीवन पर केंद्रित था
लक्ष्य अब उत्तरजीविता का था
आँकलन गणित विज्ञान पर विचारा गया
उत्तर एक समान ही मिला
समय रुका नहीं है बस धीमा चल रहा है
समर्पण किया इस वर्ष को
समय को परखा और दायित्व निभाए
जीवन और उत्तरजीविता को पहचाना
और समर्पित किए चले कालचक्र को
जीवन है तो ध्येय है
जीवन है तो लक्ष्य बनेंगे
जीवन है तो सब मुमकिन है
समर्पण है इस समय को समर्पित हम भी
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