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Sunday, October 11, 2020

एक नयी कविता

 

आज फिर एक कविता लिखने बैठा हूँ मैं

आकाश पीले से लाल हो रहा है
दूर पंछी अपने समूह में लौट रहे हैं 
इस अट्टालिका के सातवें सतह पर 
एक छोटा सा आकाश देखने बैठा हूँ मैं 

अब पवन के झोंके महसूस कर रहा हूँ
गगन में तारे छुप से रहे हैं
वो पूरा चाँद भी ओट में हो गया है
चाँदनी को गहराता हुआ बादल 
मानो खा सा गया है 
शाम के धुँधलके में परछाईं देखने बैठा हूँ मैं

रात कठोर और गहरी काली है
अम्बर ने मानो एक चादर ही डाली है 
अटारी पर खड़े हुए प्रकाशहीन आकाश के तले
मानो जीवन रुक सा गया है
इस रात में जीवंतता खोजने लगा हूँ मैं

कब रात गयी और कब सुबह हुई
भोर के तारे ने एक नया दृश्य दिखाया
अम्बर की चादर सिमट गयी है 
सुरमई छटा पूर्व दिशा में दिख रही है
सूर्या की पहली किरण ने सोते फूलों को जगाया
धरा पर जीवन लौटते देख रहा हूँ मैं

आज फिर एक कविता लिखने बैठा हूँ मैं।

Silence - मौन

 

मौन हूँ मैं , क्योंकि
प्रतीक्षा में हूँ 

मुख से शब्द, 
जब बोले गए 
कानों ने सुना, 
तब सुने गए 

मगर नयनों की भाषा 
में संवाद हो रहा है

यह नयनों की भाषा 
कठिन हैं बहुत 

कैसे कहें किसके

नयनों ने कहे
और कैसे कहें किसके 
नयनों ने सुने

इसलिए मौन हूँ मैं 
मुख और कर्ण शांत हैं 
नयन के चीत्कार के समक्ष 

यह नयन जो दीप्त और शांत 
थे कभी 
अब यहि नयन सुर्ख़ सूखे और बेजान हैं 

मौन हूँ मैं इसलिए 
इन नयनों की आर्द्र चीख़ों का 
कोई उत्तर नहीं है अब 

प्रतीक्षा में हूँ मैं 
मौन हूँ मैं

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